Wednesday, May 8, 2013

सुकून के पल

वो बचपन की शैतानियाँ 
लड़कपन की नादानियाँ 
माँ के आँचल की छाँव 
मेरा प्यारा सलोना गाँव 
वो माँ की लोरी 
वो दूध की कटोरी 
वो बागों में झूले 
वो खट्टे टिकोले
वो कंचे वो लूडो 
वो कब्बडी वो पिट्टो
वो प्यारी सहेली 
दादू की पहेली 
वो बचपन अनोखा 
गुजर गया जैसे हवा का कोई झोंका 

अब जो है जिंदगानी 
है ऐसी कहानी 
ये दफ्तर ये आफत 
चले जाने कब तक 
दिलो के ये मेले 
हैं फिर भी अकेले 
ये उलझन ये हैरत 
ये दुनिया बेगैरत 
ये घर से जो दूरी 
ज़िन्दगी ये अधूरी 
ये ईर्ष्या ये द्वेष 
दिलों में क्लेश 
ये चाहू के जाय मेरी दुनिया फिर से बदल 
बड़े याद आते हैं वो बचपन के सुकून के पल| 

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